एमआरपी के नाम पर ग्राहकों को झांसा देना अब नहीं होगा आसान

सरकार ला रही है नई मूल्य निर्धारण प्रणाली

🔷 परिचय

भारत में उपभोक्ताओं को “एमआरपी” यानी अधिकतम खुदरा मूल्य के नाम पर बरगलाया जाना कोई नई बात नहीं है। उपभोक्ताओं को अक्सर ऐसे उत्पाद मिलते हैं जिनकी एमआरपी तो ज्यादा होती है, लेकिन असली लागत उससे कहीं कम। इस भ्रम को खत्म करने और मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र सरकार अब एमआरपी प्रणाली में बदलाव की तैयारी कर रही है। यह कदम न केवल उपभोक्ताओं को राहत देगा, बल्कि बाजार में व्याप्त मूल्य भ्रम को भी समाप्त करेगा।

🔷 एमआरपी प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता क्यों पड़ी?

वर्तमान में, उत्पाद निर्माता कंपनियों को एमआरपी तय करने की पूरी छूट होती है। वे किसी भी कीमत को एमआरपी के रूप में छाप सकते हैं, चाहे वह कीमत लागत से दोगुनी ही क्यों न हो। उपभोक्ता को यह जानकारी नहीं होती कि उस उत्पाद की वास्तविक लागत कितनी है और उस पर कितना मुनाफा जोड़ा गया है।
उदाहरण के लिए, कई बार कोई उत्पाद जिसकी लागत ₹2500 है, उस पर एमआरपी ₹5000 छाप दी जाती है, ताकि उसे भारी छूट के साथ ₹2500 में बेचा जा सके और उपभोक्ता को यह भ्रम हो कि उसे “50% की छूट” मिल रही है। जबकि असल में यह सिर्फ एक मार्केटिंग ट्रिक होती है।

🔷 सरकार की नई योजना क्या है?

सरकार अब इस पुरानी प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए काम कर रही है। प्रस्ताव के अनुसार, कंपनियों को अब एमआरपी तय करते समय उसका आधार स्पष्ट करना होगा।
इसमें लागत मूल्य, लॉजिस्टिक्स खर्च, मार्केटिंग खर्च और मुनाफे की सीमित सीमा (मार्जिन) को भी दर्शाना पड़ सकता है।
सरकार इस विषय पर विभिन्न हितधारकों, उपभोक्ता संगठनों और कंपनियों से बातचीत कर रही है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य कीमतों को नियंत्रित करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि एमआरपी लागत के आधार पर उचित लाभ जोड़कर ही तय की जाए।

🔷 उपभोक्ता हितों की रक्षा की दिशा में बड़ा कदम

यह कदम उपभोक्ताओं के अधिकारों को सशक्त करेगा और बाजार में पारदर्शिता लाएगा। साथ ही यह व्यवस्था यह भी सुनिश्चित करेगी कि कंपनियां सिर्फ भारी छूट का दिखावा करके उपभोक्ताओं को गुमराह न करें।

🔷 नवीन मूल्य निर्धारण प्रणाली के लागू होने से:

  • उपभोक्ता को वास्तविक लागत और लाभ का अंदाजा होगा।
  • छूट के नाम पर चल रहे भ्रम को खत्म किया जा सकेगा।
  • बाजार में ईमानदारी और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।
  • खुदरा व्यापारियों की मनमानी पर लगाम लगेगी।

🔷 निष्कर्ष

एमआरपी प्रणाली में प्रस्तावित बदलाव निश्चित रूप से उपभोक्ताओं के हित में है। यह व्यवस्था न केवल बाजार में पारदर्शिता लाएगी, बल्कि ग्राहकों के साथ विश्वास का एक नया रिश्ता भी बनाएगी।
सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है और यदि इसे सही ढंग से लागू किया गया, तो यह भारत में उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।


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