ओलंपिक महाशक्ति बनने के लिए हर खेल में भागीदारी जरूरी: अब भी आधे से कम स्पर्धाओं में उतरता है भारत

जब से भारत ने ओलंपिक 2036 की मेजबानी की इच्छा जताई है, तब से एक सवाल पूरे देश में गूंज रहा है- क्या हम सिर्फ ओलंपिक की मेजबानी की तैयारी कर रहे हैं या पदक जीतने का सपना भी सच करने निकले हैं? पिछले एक दशक में भारत सरकार ने ओलंपिक खेलों को लेकर कई बड़े बदलाव किए हैं |खेलो इंडिया योजना,टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम और कई अन्य पहलुओं ने खेलों का माहौल सकारात्मक बनाया है| इन योजनाओं ने देश में खेलों के प्रति नई ऊर्जा और भागीदारी को जन्म दिया है |आज का युवा खिलाड़ी अब ओलंपिक के मंच पर उतरने का सपना लेकर कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा से तैयारी कर रहा है|

भारत की मौजूदा स्थिति: सीमित खेलों तक सिमटा टैलेंट

2024 पेरिस ओलंपिक में भारत ने कुल 12 खेलों में भाग लिया था, जबकि ओलंपिक में कुल 32 से अधिक खेल स्पर्धाएं होती हैं। 2025 की तैयारी में भी हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। सबसे ज्यादा फोकस कुश्ती, शूटिंग, बॉक्सिंग, बैडमिंटन और एथलेटिक्स पर है,

लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद,भारत अब भी ओलंपिक पदकों की दौड़ में पीछे हैं| इस पूरे खेल तंत्र में एक बड़ी और अक्सर अनदेखी की जाने वाली कमी यह है कि शारीरिक शिक्षकों को राष्ट्रीय खेल विकास ढांचे में पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है |जबकि स्कूलों और कॉलेज में मौजूद ये फिजिकल एजुकेशन शिक्षक ही वे पहले लोग होते हैं,जो भविष्य के ओलंपियन की पहचान करते हैं| लेकिन हमारी राष्ट्रीय खेल रणनीतियों में इन्हें शायद ही कहीं स्थान मिलता है| यही असंतुलन हमारी ओलंपिक क्षमताओं को सीमित कर रहा है| यदि हम सच में पदकों कीओर बढ़ना चाहते हैं, तो इस खाई को पाटना होगा|
 अगर हम 2036 में केवल ओलंपिक की मेजबानी नहीं, बल्कि दुनिया की खेल महाशक्ति बनने का सपना देख रहे हैं,तो इसकी तैयारी अभी से शुरू करनी होगी |हमें 2028 लॉस एंजेल्स ओलंपिक को एक प्रयोगशाला की तरह देखना चाहिए,जहां हम रणनीति बनाकर,चुनौतियों का मूल्यांकन कर खुद को सुधार सकें|

🏅 महाशक्ति बनने के लिए क्या ज़रूरी है?

  1. हर खेल में भागीदारी: अमेरिका, चीन, जापान जैसे देश ओलंपिक की लगभग हर स्पर्धा में उतरते हैं। इससे उनकी पदक संख्या बढ़ती है और खिलाड़ियों को ज्यादा अवसर मिलते हैं।
  2. जमीनी स्तर पर टैलेंट स्काउटिंग: भारत के छोटे शहरों और गांवों में छुपा हुआ टैलेंट तब तक सामने नहीं आएगा, जब तक हर खेल के लिए अलग-अलग प्रोग्राम नहीं बनाए जाएंगे।
  3. स्पोर्ट्स साइंस और कोचिंग का विकास: तकनीकी प्रशिक्षण, फिजियोथैरेपी, डाइट प्लान, और साइकोलॉजिकल सपोर्ट जैसे पहलुओं में भी अभी बहुत सुधार की जरूरत है।

📰 आज की ताजा खबर: IOA की नई नीति की घोषणा

2 जून 2025 को इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) ने घोषणा की कि 2028 लॉस एंजेलेस ओलंपिक के लिए भारत का लक्ष्य 25 से अधिक खेलों में भागीदारी करना है। इसके लिए हर राज्य को 3–5 खेलों को “फोकस स्पोर्ट्स” के रूप में विकसित करने को कहा गया है।

🗣️ “ओलंपिक में पदक लाना तभी संभव है जब हम हर खेल में मजबूत उपस्थिति दर्ज करें,” — IOA प्रेसिडेंट


🧒 युवाओं में बढ़ता जोश, लेकिन दिशा ज़रूरी

आज के युवा खेलों के प्रति अधिक जागरूक हैं, लेकिन उन्हें सही मार्गदर्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मिल रहा। अगर भारत को 2036 तक एक ओलंपिक महाशक्ति बनाना है, तो स्कूल स्तर से ही हर खेल को बढ़ावा देना होगा, न कि सिर्फ क्रिकेट या बैडमिंटन तक सीमित रहना चाहिए।

🔚 निष्कर्ष: महाशक्ति बनने के लिए सोच बदलनी होगी

भारत को 2036 ओलंपिक की मेजबानी की दिशा में सशक्त कदम उठाने हैं तो इसकी शुरुआत हमें अपने स्कूलों से ही करनी होगी| हर स्कूल में ओलंपिक और गैर- परंपरागत खेलों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए |इस दिशा में एक और अहम कदम है,फिजिकल एजुकेशन शिक्षकों का सशक्तिकरण |राज्य सरकारों को खेलों के लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्र बनाए जाने चाहिए| 2036 ओलंपिक सिर्फ एक आयोजन नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक ऐलान हो कि भारत हर खेल में प्रभुत्व रखता है| असली सफलता तब होगी जब हर राज्य से खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मंच पर उतरें| हर स्पर्धा में भारत भाग ले और हर खेल में तिरंगा शान से लहराए






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