“कुछ छूट जाने का आनंद” – एक नया नजरिया आत्मसंतोष की ओर

आज के डिजिटल युग में, हम सभी FOMO यानी ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ (कुछ छूट जाने का डर) के शिकार हो चुके हैं। हर पल हम सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हैं, दूसरों की जिंदगी के अपडेट्स देखते हैं, और खुद को असफल महसूस करते हैं क्योंकि हम हर चीज़ में शामिल नहीं हो पा रहे। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि कुछ छूट जाने का भी अपना एक सुख होता है? क्या हर चीज़ में शामिल होना ज़रूरी है?

“कुछ छूट जाने का आनंद भी जीवन में आत्मसंतुष्टि और मानसिक शांति ला सकता है।”


FOMO: एक नया मानसिक दबाव

आजकल Instagram, Facebook, YouTube Reels जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर हर पल कुछ न कुछ हो रहा है। लोग अपने जीवन की ‘हाइलाइट’ दिखा रहे हैं — यात्राएँ, पार्टियाँ, नए गैजेट्स, सफलताएँ और क्या कुछ नहीं। ऐसे में आम आदमी खुद को पीछे महसूस करता है। उसे लगता है कि वह बहुत कुछ मिस कर रहा है, और यह सोच उसके तनाव, चिंता और आत्मविश्वास में कमी का कारण बनती है।


JOMO: एक सकारात्मक सोच

FOMO का ठीक उल्टा है JOMO — ‘जॉय ऑफ मिसिंग आउट’। यानी कुछ चीज़ों को जानबूझकर छोड़ देना और उस छूट जाने में ही आनंद खोजना। इसका मतलब यह नहीं कि आप दुनिया से कट जाएँ या सुस्त हो जाएँ, बल्कि इसका अर्थ है कि आप अपनी प्राथमिकताओं को समझें, और उसी के अनुसार जीवन जीएँ।

जब हम कुछ चीज़ों को छोड़ने का फैसला करते हैं, तो हम खाली समय, आत्मचिंतन और आंतरिक संतुलन को आमंत्रित करते हैं। इससे न केवल मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि नींद, रिश्ते और व्यक्तिगत विकास भी संवरते हैं।


“ना” कहना भी है आत्मसम्मान का हिस्सा

“ना” कहने की कला। यह एक बहुत ही शक्तिशाली अभ्यास है, जो हमें अपने जीवन का नियंत्रण लेने में मदद करता है। जब हम किसी काम के लिए “ना” कहते हैं, तो हम दूसरे काम के लिए “हां” कहते हैं — वो काम जो हमारे लिए सच में जरूरी है।

उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति घर पर शांत शाम बिताना चाहता है, लेकिन उसे हर बार पार्टी या सोशल मीटिंग में जाना पड़ता है, तो वह धीरे-धीरे थकावट और असंतुलन महसूस करता है। ऐसे में “ना” कहना न केवल आत्म-सम्मान है, बल्कि आत्म-रक्षा भी है।


वास्तविकता बनाम दिखावा: खुद को पहचानें

जब हम ऑनलाइन दिखने वाली ‘हाइलाइट रील’ को असली जीवन समझ लेते हैं, तो हम अपनी असली पहचान खोने लगते हैं। हर किसी का जीवन अलग होता है। किसी के पास पैसे हैं, तो किसी के पास समय। किसी के पास यात्रा का अवसर है, तो किसी के पास परिवार के साथ समय बिताने का सुख।

जब हम दूसरों की जिंदगी से तुलना करना बंद करते हैं, तो हम खुद को बेहतर समझ पाते हैं। यही आत्मसंतोष की पहली सीढ़ी है।


आत्मचिंतन और जागरूकता की शक्ति

JOMO यानी ‘छूट जाने का आनंद’ हमें आत्मचिंतन की ओर ले जाता है। जब हम भागदौड़ से बाहर निकलते हैं, तो हमारे पास सोचने का समय होता है — मैं कौन हूँ? मुझे क्या करना अच्छा लगता है? मेरी प्राथमिकताएँ क्या हैं?

यह आत्मचिंतन हमें अपने जीवन के बड़े और छोटे निर्णयों को बेहतर ढंग से लेने में सक्षम बनाता है।


छूटना ही मिलना है – एक नई परिभाषा

जिन चीज़ों को हम ‘छूट’ मानते हैं, कभी-कभी वही चीज़ें हमारे जीवन में नई दिशा देती हैं। यदि हम हर समय व्यस्त रहते हैं, तो हम कभी खाली समय में बैठकर किताब नहीं पढ़ पाते, संगीत नहीं सुन पाते या अपने परिवार से बात नहीं कर पाते।

कुछ चीजें छूटने दीजिए — हो सकता है वो आपको खुद के और करीब ले जाएँ।


JOMO और मानसिक स्वास्थ्य

आज की दुनिया में डिप्रेशन, एंग्जायटी और तनाव का स्तर बढ़ता जा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह है – खुद को हर किसी से बेहतर साबित करने की होड़। JOMO इस होड़ से बाहर आने का एक माध्यम है। जब हम हर चीज़ में शामिल नहीं होते, तो हमारे पास खुद के लिए समय होता है। हम बेहतर नींद ले पाते हैं, खुद को दोबारा रीचार्ज कर पाते हैं।


JOMO को अपनाना कैसे शुरू करें?

  1. सोशल मीडिया डिटॉक्स करें – दिन में कुछ घंटे फोन और सोशल मीडिया से दूरी बनाएं।
  2. अपनी प्राथमिकताएँ तय करें – कौनसे काम सच में ज़रूरी हैं, यह तय करें।
  3. ना कहना सीखें – यह मुश्किल हो सकता है, लेकिन अभ्यास से आसान होता है।
  4. खाली समय का आनंद लें – बिना किसी उद्देश्य के भी समय बिताना ठीक है।
  5. आभार व्यक्त करें – जो है, उसमें संतोष ढूंढें।

निष्कर्ष: संतोष में ही सुख है

जीवन में सब कुछ पाने की ज़रूरत नहीं, कुछ चीज़ों को जानबूझकर ‘ना’ कहना और छोड़ देना भी एक कला है। यह कला न केवल हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि एक आत्मसंतोष से भर देती है जो किसी भी बाहरी उपलब्धि से कहीं अधिक मूल्यवान है।

जैसे ही हम JOMO को अपनाते हैं, हम एक ऐसे जीवन की ओर बढ़ते हैं जो शांत, अर्थपूर्ण और सच्चे आनंद से भरपूर होता है।


Leave a Comment