हाल ही में भारत द्वारा सफलतापूर्वक अंजाम दिए गए ओपरेशन सिंदूर ने न केवल दुश्मन के मंसूबों को नाकाम किया, बल्कि इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचा दी है। इस ऑपरेशन के दौरान यह खुलासा हुआ कि पाकिस्तान को न केवल आंतरिक सहायता मिल रही थी, बल्कि कुछ बाहरी देशों से भी समर्थन प्राप्त था — जिनमें सबसे प्रमुख नाम तुर्किये (Turkey) का सामने आया।

ऑपरेशन सिंदूर: संक्षिप्त पृष्ठभूमि
ऑपरेशन सिंदूर, भारतीय सेना द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में चलाया गया एक उच्च स्तरीय सैन्य अभियान था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान-समर्थित आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाना था। यह ऑपरेशन उच्च तकनीकी निगरानी और जमीनी कार्रवाई का मिश्रण था, जिसने सीमावर्ती इलाकों में शांति और स्थिरता बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
तुर्किये की भूमिका कैसे उजागर हुई?
इंटेलिजेंस इनपुट और इंटरसेप्टेड कम्युनिकेशन से यह खुलासा हुआ कि तुर्किये की कुछ एजेंसियों और सरकारी स्तर पर मौजूद लोगों ने पाकिस्तान को तकनीकी सहायता, ड्रोन उपकरण, और साइबर सर्विलांस में मदद की थी।
इसके अलावा, कुछ रिपोर्टों में यह भी सामने आया कि तुर्किये में स्थित आतंकी सहानुभूति रखने वाले संगठनों ने पाकिस्तान के ISI को डेटा शेयर किया था, जो भारतीय सेना की मूवमेंट को ट्रैक करने में उपयोग किया गया।
भारत की प्रतिक्रिया: कूटनीतिक और आर्थिक दबाव
भारत ने तुर्किये के इस रवैये को ‘सीधा हस्तक्षेप’ मानते हुए कई कदम उठाए। सबसे पहले, नई दिल्ली में तुर्की राजदूत को तलब किया गया और विरोध पत्र सौंपा गया। साथ ही, भारत ने तुर्की के साथ कुछ द्विपक्षीय समझौतों की समीक्षा की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
Moreover, भारत ने संयुक्त राष्ट्र और G20 जैसे वैश्विक मंचों पर भी तुर्किये की भूमिका को उजागर किया। भारत के प्रमुख सहयोगियों – फ्रांस, अमेरिका और इज़राइल – ने भी इस विषय पर चिंता जताई और भारत को कूटनीतिक समर्थन प्रदान किया।
आर्थिक मोर्चे पर कार्रवाई
भारत ने तुर्की के साथ व्यापारिक सहयोग में भी कटौती की है। विशेष रूप से रक्षा सौदों, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और टूरिज़्म सेक्टर में निवेश पर रोक लगाने की सिफारिश की गई है। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने भी व्यापारिक संस्थानों को तुर्की में निवेश से सतर्क रहने को कहा है।
तुर्किये की सफाई और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
तुर्की सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनका कोई आधिकारिक सहयोग पाकिस्तान को नहीं मिला है, और यदि निजी कंपनियों ने ऐसा कुछ किया है तो उसकी जांच की जाएगी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तुर्किये की भूमिका पर संशय बना हुआ है, और NATO जैसी संस्थाओं के भीतर भी यह मुद्दा चर्चा में है।
निष्कर्ष:
भारत का यह स्पष्ट और दृढ़ रुख दर्शाता है कि अब वह न केवल सीमा पर बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी आतंकवाद और उसके समर्थकों के खिलाफ एक निर्णायक नीति अपना चुका है। ओपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक सख्त संदेश है — कि भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता से किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा।