पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर और तानाशाही की पदक प्यास 2025

✦ प्रस्तावना

पाकिस्तान की राजनीति और सेना का रिश्ता हमेशा से असामान्य और विवादित रहा है। हाल ही में पाकिस्तान आर्मी चीफ Field Marshal Asim Munir ने खुद को पाकिस्तान का दूसरा सर्वोच्च वीरता सम्मान Hilal-e-Jurat दिलवाया। यह कदम उन्हें न केवल पाकिस्तान के तानाशाहों की कतार में खड़ा करता है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या सेना प्रमुख खुद अपने लिए सम्मान गढ़ सकते हैं?

इस घटना की तुलना अतीत के कई तानाशाहों से की जा रही है – जैसे Idi Amin (Uganda), Saddam Hussein (Iraq) और पाकिस्तान के ही Ayub Khan, जिन्होंने खुद को ऊँचे सैन्य रैंक और पदकों से नवाज़ा।


✦ पाकिस्तान आर्मी चीफ Asim Munir का हालिया कदम

पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर और तानाशाही की पदक प्यास
  • Asim Munir को मई 2025 में Field Marshal के रैंक पर प्रमोट किया गया।
  • अगस्त 2025 में उन्हें Hilal-e-Jurat दिया गया, जो असल में युद्ध के मैदान में दिखाए गए साहस पर दिया जाता है।
  • लेकिन सवाल यह है कि आर्मी चीफ का कोई “कमांडिंग ऑफिसर” नहीं होता। यानी, यह सम्मान सीधे-सीधे उन्होंने खुद को ही दे दिया।

Hilal-e-Jurat की असल परिभाषा

यह पदक पाकिस्तान के वीर सैनिकों को दुश्मन से जंग के दौरान असाधारण साहस दिखाने पर दिया जाता है। परंतु Asim Munir न तो किसी सक्रिय युद्ध में रहे और न ही उनकी कोई ऐसी कार्रवाई दर्ज है।


✦ इतिहास से तुलना: तानाशाह और उनके स्वनिर्मित पदक

Field Marshal Ayub Khan (Pakistan)

  • 1958 में सत्ता पर कब्ज़ा किया।
  • खुद को Field Marshal घोषित कर दिया, जबकि उनका कोई युद्ध नायक जैसा रिकॉर्ड नहीं था।

Idi Amin (Uganda)

  • खुद को “Field Marshal” और “CBE (Conqueror of the British Empire)” तक घोषित किया।
  • खुद को “Lifetime President” भी बना लिया।

Saddam Hussein (Iraq)

  • राष्ट्रपति और तानाशाह रहते हुए खुद को कई सैन्य सम्मान दिए।
  • उनकी सेना में पदक और रैंक सिर्फ वफादारी और शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक बन गए थे।

✦ पाकिस्तान में सैन्य संस्कृति और सत्ता की लड़ाई

पाकिस्तान की राजनीति में सेना हमेशा से सबसे प्रभावशाली संस्था रही है।

  • आर्मी चीफ को पाकिस्तान का सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता है।
  • राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक अक्सर सेना के दबाव में काम करते हैं।
  • इस कारण से सेना प्रमुख का खुद को पदक और रैंक देना कोई आश्चर्य की बात नहीं।

✦ आलोचना और सवाल

  • क्या बिना किसी युद्ध में हिस्सा लिए वीरता का पदक देना सैन्य परंपराओं का मज़ाक नहीं है?
  • क्या Asim Munir ने खुद को अमर करने की कोशिश की है, जैसे तानाशाह करते हैं?
  • पाकिस्तान की जनता और मीडिया के एक वर्ग ने इसे “आत्म-प्रशंसा की राजनीति” बताया।

✦ भारत और वैश्विक नज़र

भारत समेत पूरी दुनिया इस घटना को तानाशाही प्रवृत्ति के तौर पर देख रही है।

  • भारत में सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पाकिस्तान सेना की आंतरिक राजनीति और सत्ता के लालच की झलक है।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे पाकिस्तान की “लोकतांत्रिक कमजोरी” के तौर पर आंका जा रहा है।

✦ निष्कर्ष

Asim Munir का खुद को वीरता पदक देना सिर्फ एक व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का प्रतीक नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सेना-प्रधान राजनीति की सच्चाई को उजागर करता है। यह घटना दर्शाती है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक संस्थाएं अब भी सेना के दबाव में हैं। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी नेता या सैन्य प्रमुख ने खुद को महान बताने की कोशिश की, वह सत्ता में तो कुछ समय के लिए टिके, लेकिन इतिहास में हमेशा एक तानाशाह के रूप में दर्ज हुए।

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