पोंग बांध का परिचय
पोंग बांध, जिसे महाराणा प्रताप सागर भी कहा जाता है, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1974 में ब्यास नदी पर किया गया था। यह एशिया के सबसे बड़े मिट्टी से बने बांधों में से एक है और इसे बनाने का उद्देश्य था –
- बिजली उत्पादन
- सिंचाई व्यवस्था को मजबूत करना
- जल संरक्षण
- मत्स्य पालन और पर्यटन को बढ़ावा देना
आज पोंग बांध न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लिए भी जीवनरेखा बन चुका है। इसकी विशाल जल क्षमता और जल स्तर पर निर्भर करती है लाखों किसानों की खेती-बाड़ी और करोड़ों लोगों की प्यास।

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पोंग बांध का इतिहास और निर्माण
पोंग बांध की परिकल्पना 1960 के दशक में हुई थी जब ब्यास नदी का पानी व्यर्थ बहकर निकल जाता था। उस समय उत्तर भारत में सिंचाई और बिजली की भारी कमी थी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर इस विशाल परियोजना को शुरू किया।
- बांध की ऊँचाई लगभग 133 मीटर है।
- जलाशय का फैलाव करीब 41 किलोमीटर लंबा और 19 किलोमीटर चौड़ा है।
- जलाशय की कुल भंडारण क्षमता 13,725 मिलियन क्यूबिक मीटर है।
पोंग बांध ने न केवल किसानों की किस्मत बदली बल्कि हिमाचल के कांगड़ा और आसपास के क्षेत्रों में पर्यटन को भी बढ़ावा दिया। आज यह क्षेत्र पक्षी विहार, मछली पालन और बोटिंग जैसी गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है।
पोंग बांध जल स्तर की हकीकत
पोंग बांध का जल स्तर समय-समय पर बदलता रहता है और यही बदलाव किसानों और राज्यों के लिए चिंता का विषय बन जाता है।
- सामान्य जल स्तर – 1400 फीट
- अधिकतम जल स्तर – 1420 फीट से ऊपर
- न्यूनतम आवश्यक जल स्तर – 1380 फीट
जब जल स्तर 1380 फीट के आसपास होता है तो राजस्थान की नहरों तक पर्याप्त पानी पहुँच जाता है। लेकिन जैसे ही यह स्तर नीचे जाता है, इंदिरा गांधी नहर और गंगनहर में पानी की आपूर्ति प्रभावित होती है। वहीं, जब जल स्तर 1400 फीट से अधिक हो जाता है, तो पानी का दबाव बढ़ जाता है और वितरण व्यवस्था पर असर पड़ता है।
2011 में राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि जब जल स्तर 1421 फीट तक पहुँचा तो किसानों को तय मात्रा से कम पानी मिला और उनकी फसलें सूख गईं।
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राजस्थान पर पोंग बांध जल स्तर का प्रभाव
पानी की आपूर्ति
राजस्थान की नहरें जैसे इंदिरा गांधी नहर और गंगनहर पूरी तरह पोंग बांध पर निर्भर हैं। अगर जल स्तर सही रहे तो बीकानेर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर और गंगापुर जैसे शुष्क जिलों में लाखों हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई हो पाती है।
किसानों की चिंता
राजस्थान के किसान गेहूं, सरसों, चना और कपास जैसी फसलों की खेती करते हैं। अगर पोंग बांध का जल स्तर गिर जाए तो इन जिलों में सिंचाई रुक जाती है।
- बीकानेर में सरसों और चना प्रभावित होते हैं।
- हनुमानगढ़ में गेहूं और कपास की पैदावार घट जाती है।
- श्रीगंगानगर में गन्ना और सब्जियों की खेती पर असर पड़ता है।
पानी की कमी के कारण किसानों को निजी ट्यूबवेल और डीजल पंप का सहारा लेना पड़ता है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है और मुनाफा घटता है।
राजनीतिक मुद्दा
पोंग बांध जल स्तर कई बार राजस्थान और हिमाचल सरकारों के बीच टकराव का कारण बनता है। राजस्थान सरकार का कहना है कि तय समझौते के अनुसार उन्हें पर्याप्त पानी नहीं मिलता, जबकि हिमाचल सरकार का दावा है कि मानसून की अनिश्चितता और भंडारण की सीमाएं इसके लिए जिम्मेदार हैं। यह मुद्दा चुनावों में भी गूंजता है और विपक्ष अक्सर इसे किसानों की उपेक्षा से जोड़ता है।
पोंग बांध से जुड़े विवाद और चुनौतियां
जल बंटवारा विवाद
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश सभी को ब्यास नदी के पानी की जरूरत है। लेकिन बंटवारे पर कभी सहमति नहीं बन पाई। सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला गया और कई बार केंद्र सरकार को मध्यस्थता करनी पड़ी।
किसानों का आंदोलन
कई बार पोंग बांध जल स्तर कम होने पर राजस्थान के किसान सड़कों पर उतर आए। हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर में किसानों ने नहरों में पानी की मांग को लेकर आंदोलन चलाए। उनका कहना रहा कि उन्हें तय हिस्से से कम पानी दिया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन और भविष्य की चिंता
विशेषज्ञ मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसून अनिश्चित हो गया है। कभी अधिक बारिश होती है और कभी सूखा पड़ता है। ऐसे में पोंग बांध जल स्तर पर सीधा असर पड़ता है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले वर्षों में जल संकट और गंभीर हो सकता है।
समाधान और आगे का रास्ता
- राज्यों के बीच पारदर्शी जल समझौता होना चाहिए ताकि विवाद न बढ़ें।
- नहरों का आधुनिकीकरण कर पानी की बर्बादी रोकी जा सकती है।
- किसानों को ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- पोंग बांध जल स्तर की रियल-टाइम निगरानी किसानों तक मोबाइल ऐप और पोर्टल के माध्यम से पहुँचनी चाहिए।
- जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना होगा।
निष्कर्ष
पोंग बांध जल स्तर केवल आंकड़ों का मामला नहीं है, बल्कि यह सीधे राजस्थान और उत्तर भारत के लाखों किसानों की आजीविका और उनकी फसलों से जुड़ा हुआ विषय है। अगर समय पर पानी मिले तो यह बांध किसानों के लिए वरदान है, लेकिन जल स्तर में कमी या असमान वितरण उनकी मेहनत को मिट्टी में मिला देता है।
इसलिए जरूरी है कि पोंग बांध का जल स्तर सही ढंग से प्रबंधित हो, राज्यों के बीच विश्वास कायम किया जाए और आधुनिक तकनीकों को अपनाकर पानी की हर बूंद का सही उपयोग किया जाए। तभी इस बांध की असली सफलता साबित होगी।
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