📝 परिचय
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के तहत हाल ही में प्रकाशित ड्राफ्ट मतदाता सूची ने राजनीतिक दलों में खलबली मचा दी है। फर्जी नाम, मृतक घोषित किए गए जीवित मतदाता और डुप्लीकेट वोटर आईडी जैसे मुद्दों को लेकर विपक्षी पार्टियां लगातार सवाल उठा रही हैं। वहीं, सत्ता पक्ष यानी भाजपा का दावा है कि “मूल निवासी मतदाता छूटे नहीं जाएंगे”।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे –
- बिहार की मतदाता सूची में क्या गड़बड़ियां सामने आई हैं
- किस तरह से पार्टियां और बूथ लेवल एजेंट (BLA) इसका विरोध कर रहे हैं
- निर्वाचन आयोग (EC) का क्या रुख है
- और लोकतंत्र पर इन गड़बड़ियों के संभावित प्रभाव
🔍 गड़बड़ियों के प्रकार

मृतक घोषित जीवित मतदाता
- आरा (बिहार) में CPI (ML-Liberation) के BLAs ने 9 ऐसे केस पकड़े, जिनमें जीवित मतदाताओं को मृतक घोषित कर सूची से हटा दिया गया।
- जैसे कि मदन प्रसाद, एक दिहाड़ी मजदूर, जिन्हें मतदाता सूची में मृत दिखाया गया जबकि वे 2024 लोकसभा चुनाव में वोट डाल चुके थे।
डुप्लीकेट वोटर आईडी
- दरभंगा में भाजपा के BLA लक्ष्मण कुमार ने 665 मतदाताओं की सूची सौंपी, जिनके पास एक ही विधानसभा में दो से चार EPIC (Elector Photo Identity Card) नंबर मिले।
- लगभग सभी मतदाता अल्पसंख्यक समुदाय से थे।
फर्जी नाम और गलत प्रविष्टियां

- आरा जिले के कुछ गांवों में एक ही व्यक्ति के तीन अलग-अलग नाम और EPIC नंबर मिले।
- जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र के 76 चौधरी (EBC वर्ग) को गलती से चौबे (उच्च जाति) लिख दिया गया।
मतदाता नाम विलोपन
- औरंगाबाद के वार्ड नंबर 13 में कांग्रेस के BLA सर्विंद कुमार ने 122 नाम हटाए जाने की शिकायत की।
- इनमें से अधिकतर दलित और मुस्लिम मतदाता थे।
- कई को “स्थायी रूप से बाहर चले गए” दिखाया गया, जबकि वे केवल काम के लिए बाहर गए थे।
📜 निर्वाचन आयोग का पक्ष
- EC का कहना है कि सभी आपत्तियां निर्धारित फॉर्म (Form 6 जोड़ने के लिए, Form 7 हटाने के लिए) और शपथ पत्र के साथ दाखिल होनी चाहिए।
- झूठा शपथपत्र भरना, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 31 के तहत अपराध है।
- BLAs का आरोप है कि वे मौखिक या लिखित शिकायत करते हैं, लेकिन EC उनसे शपथपत्र मांगता है, जिस कारण कई मामले अधर में लटके रहते हैं।
🗳️ राजनीतिक दलों की स्थिति
भाजपा का दावा
- भाजपा के एजेंटों का कहना है कि “मूल निवासी छूटे नहीं जाएंगे”।
- वे मतदाताओं से फोन और व्हाट्सएप के जरिए दस्तावेज लेकर फॉर्म भरवा रहे हैं।
- भाजपा का दावा है कि प्रक्रिया सुचारु है और सभी को शामिल कर लिया जाएगा।
वाम दलों और विपक्ष की आपत्ति
- CPI (ML-Liberation) और कांग्रेस का आरोप है कि बड़ी संख्या में दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं।
- वे इसे “सुनियोजित साजिश” बता रहे हैं।
- विपक्षी दल इसे चुनावी धांधली से जोड़कर जनता के बीच मुद्दा बना रहे हैं।
⚖️ लोकतंत्र पर असर
- यदि मूल और वास्तविक मतदाता सूची से बाहर कर दिए जाते हैं, तो यह सीधा उनके मताधिकार का हनन है।
- डुप्लीकेट वोटर आईडी से फर्जी मतदान की आशंका बढ़ जाती है।
- ऐसी गड़बड़ियां चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती हैं।
📌 समाधान और आगे का रास्ता
तकनीकी सुधार
- आधार और वोटर आईडी का बेहतर लिंकिंग।
- डुप्लीकेट प्रविष्टियों को रोकने के लिए AI आधारित वेरिफिकेशन सिस्टम।
पारदर्शिता
- सभी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज हों और उनकी ट्रैकिंग का सिस्टम हो।
- ड्राफ्ट मतदाता सूची जन सुनवाई के जरिए जांची जाए।
जनजागरूकता
- ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जाए।
- लोग समझें कि उनका नाम सूची में है या नहीं और समय रहते शिकायत करें।
✅ निष्कर्ष
बिहार की मतदाता सूची पर उठ रहे सवाल यह दिखाते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और सटीकता बेहद जरूरी है। मृतक घोषित किए गए जीवित लोग, डुप्लीकेट वोटर आईडी और नाम कटने जैसी घटनाएं न केवल लोकतंत्र को कमजोर करती हैं बल्कि जनता का विश्वास भी घटाती हैं।
राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर निर्वाचन आयोग के साथ सहयोग करें ताकि हर असली मतदाता का नाम सूची में बना रहे और लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हों।
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