राजस्थान की पंचायत राजनीति में सरपंच का पद सबसे अहम माना जाता है। हाल ही में चुनाव आयोग ने बड़ा ऐलान किया कि अब सरपंच बनने के लिए Graduation डिग्री ज़रूरी होगी। इस फैसले से गांव-गांव में चर्चा है कि पढ़े-लिखे लोग ही सरपंच क्यों बनें। लोकतंत्र को मजबूत करने में सरपंच की भूमिका हमेशा अहम रही है। अब सवाल यह है कि क्या शिक्षा ही सफल सरपंच बनने की पहली शर्त हो सकती है?
राजस्थान में सरपंच पद की न्यूनतम योग्यता
पहले क्या नियम था?
अब तक राजस्थान में सरपंच चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता सिर्फ 8वीं पास (कुछ क्षेत्रों में 10वीं पास) निर्धारित थी। यह व्यवस्था 2015 में लागू हुई थी। उस समय भी ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई न कर पाने वालों के लिए यह एक बड़ा मुद्दा बना था।
नया प्रस्ताव – Graduation अनिवार्य
मीडिया रिपोर्ट्स और चुनाव आयोग की चर्चाओं के अनुसार, यह प्रस्ताव सामने आया है कि आने वाले चुनावों में सरपंच पद के लिए उम्मीदवार को कम से कम स्नातक होना आवश्यक होगा।
- इसका अर्थ है कि बिना डिग्री वाले लोग सरपंच का चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
- उद्देश्य यह बताया जा रहा है कि पंचायत स्तर पर शिक्षा और प्रशासनिक दक्षता बढ़े।
क्या वास्तव में लागू हुआ है यह नियम?
सत्यता की जांच
अभी तक यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं हुआ है, बल्कि यह प्रस्ताव और चर्चा के स्तर पर है।
राज्य सरकार और चुनाव आयोग इस पर मंथन कर रहे हैं। अंतिम फैसला राजस्थान विधानसभा या अध्यादेश के जरिए ही लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
2015 में हरियाणा सरकार ने पंचायत चुनाव के लिए 10वीं पास योग्यता लागू की थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराया था। इसलिए यदि राजस्थान सरकार स्नातक डिग्री को अनिवार्य करती है, तो कानूनी रूप से यह लागू किया जा सकता है।
सरपंच पद पर Graduation अनिवार्य करने के पक्ष में तर्क

शिक्षा से प्रशासनिक दक्षता
- पढ़े-लिखे प्रतिनिधि पंचायत योजनाओं को बेहतर समझ पाएंगे।
- डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस जैसी योजनाओं में तकनीकी जानकारी की ज़रूरत होती है।
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण
- जब उम्मीदवार शिक्षित होंगे तो वे दस्तावेज़ों और नीतियों को खुद पढ़ सकेंगे।
- इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और पारदर्शिता बढ़ेगी।
- जब गांव का मुखिया पढ़ा-लिखा होगा, तो यह बच्चों और युवाओं को पढ़ाई की ओर प्रेरित करेगा।
Graduation अनिवार्य करने के खिलाफ तर्क

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की कमी
- राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी स्नातक तक पहुंचना मुश्किल है।
- विशेषकर महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा की सुविधा सीमित है।
लोकतंत्र से वंचित करना
- सरपंच का चुनाव लोकतंत्र का आधार है।
- शिक्षा को बाध्यता बनाकर गरीब और वंचित वर्ग के लोगों को चुनाव लड़ने से वंचित करना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन माना जा सकता है।
अनुभव बनाम डिग्री
- कई ऐसे लोग हैं जिनके पास डिग्री नहीं है, लेकिन गांव के मामलों को संभालने का गहरा अनुभव है।
- सिर्फ डिग्री होने से प्रशासनिक कुशलता की गारंटी नहीं दी जा सकती।
राजस्थान में स्थिति
आंकड़ों के अनुसार
- राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या अभी भी सीमित है।
- यदि यह नियम लागू होता है तो सरपंच चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या में भारी कमी आ सकती है।
राजनीतिक असर
- यदि यह नियम लागू हुआ तो युवा और पढ़े-लिखे वर्ग को राजनीति में आने का मौका मिलेगा।
- लेकिन इससे पुराने अनुभवी नेताओं की भूमिका कम हो सकती है।
भविष्य की संभावनाएँ
- यह प्रस्ताव अभी चर्चा में है, और इसे लागू करने के लिए सरकार को कानून बनाना होगा।
- संभव है कि पहले चरण में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाए।
- यदि लागू हुआ तो यह देशभर में एक नई बहस की शुरुआत करेगा।
निष्कर्ष
राजस्थान में सरपंच पद के लिए स्नातक डिग्री अनिवार्य करने का फैसला अभी प्रस्ताव और बहस के स्तर पर है। यह सच है कि इससे पंचायत स्तर पर शिक्षा और प्रशासनिक दक्षता बढ़ सकती है, लेकिन साथ ही यह लोकतंत्र के समावेशी स्वरूप को भी प्रभावित कर सकता है।
यह नियम लागू होगा या नहीं, यह सरकार और विधानसभा के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। ग्रामीण समाज, शिक्षा व्यवस्था और लोकतांत्रिक अधिकार – इन तीनों के बीच संतुलन बनाकर ही कोई भी नीति सफल हो सकती है।
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