भारत की राजनीति और न्यायपालिका में अक्सर ऐसे मामले आते हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन को चुनौती देते हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया, जिसमें कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपत्तिजनक कार्टून बनाने का आरोप लगा। इस केस ने न केवल कानूनी हलकों में बल्कि मीडिया और आम जनता के बीच भी व्यापक चर्चा पैदा की।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन वी अंजारिया शामिल थे, ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को अग्रिम जमानत देने का आदेश दिया। यह फैसला कई मायनों में अहम है क्योंकि इससे फ्री स्पीच, राजनीतिक व्यंग्य और धार्मिक भावनाओं की सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दों पर एक नया दृष्टिकोण सामने आया है।

केस की पृष्ठभूमि
शिकायत और आरोप
मई 2025 में इंदौर, मध्य प्रदेश के वकील और आरएसएस कार्यकर्ता विनय जोशी ने हेमंत मालवीय के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि मालवीय ने सोशल मीडिया पर ऐसे कार्टून अपलोड किए, जिनसे:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को धूमिल किया गया।
- आरएसएस कार्यकर्ताओं और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची।
- सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश की गई।
इस शिकायत के बाद इंदौर पुलिस ने हेमंत मालवीय के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।
दर्ज धाराएं
पुलिस ने उनके खिलाफ निम्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की:
- धारा 196 – विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने के प्रतिकूल कार्य।
- धारा 299 – धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का इरादा।
- धारा 352 – जानबूझकर अपमान कर शांति भंग करना।
- आईटी एक्ट की धारा 67-ए – इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना।
इन धाराओं की गंभीरता को देखते हुए यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी संवेदनशील बन गया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की
हेमंत मालवीय ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की याचिका दायर की थी। लेकिन मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 3 जुलाई 2025 को उनकी याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
इसके बाद मालवीय ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- 15 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगा दी।
- और अंततः 2 सितंबर 2025 को उन्हें अग्रिम जमानत मिल गई।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्या हुआ?
बचाव पक्ष की दलीलें
मालवीय की ओर से मशहूर वकील वृंदा ग्रोवर ने दलील दी:
- कार्टूनिस्ट ने पहले ही सोशल मीडिया पर सार्वजनिक माफी मांग ली है।
- उन्हें अब तक पूछताछ के लिए तलब भी नहीं किया गया।
- ऐसे में गिरफ्तारी की आशंका के आधार पर अग्रिम जमानत मिलनी चाहिए।
सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा:
- पुलिस सभी सबूत जुटा रही है।
- उचित समय पर पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
- जांच में सहयोग न करने पर जमानत रद्द करने की मांग की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत मालवीय को अग्रिम जमानत देते हुए कहा:
- कार्टूनिस्ट ने माफी मांगकर अपनी गलती स्वीकार कर ली है।
- हालांकि अगर उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया तो पुलिस उनकी जमानत रद्द करने की मांग कर सकती है।
- अदालत ने मामले को फ्री स्पीच बनाम धार्मिक भावनाएं के संदर्भ में संवेदनशील मानते हुए संतुलित रुख अपनाया।
इस केस के कानूनी और सामाजिक पहलू
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
- कार्टून और व्यंग्य इसी अधिकार का हिस्सा माने जाते हैं।
- लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, उस पर कुछ यथोचित प्रतिबंध भी लागू होते हैं।
धार्मिक भावनाओं की सुरक्षा
- भारतीय दंड संहिता में कई धाराएं हैं जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर सजा का प्रावधान करती हैं।
- अदालतें हमेशा यह संतुलन साधने की कोशिश करती हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक सौहार्द दोनों सुरक्षित रहें।
सोशल मीडिया की भूमिका
- आज के दौर में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है।
- यहां पोस्ट किए गए कंटेंट का असर लाखों लोगों पर होता है।
- इसलिए जिम्मेदारी और जवाबदेही और भी बढ़ जाती है।
हेमंत मालवीय का पक्ष
हेमंत मालवीय ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि:
- उनका इरादा किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था।
- उन्होंने अपने कार्टून को व्यंग्यात्मक कला के रूप में प्रस्तुत किया था।
- माफी मांगकर उन्होंने यह संदेश दिया कि अगर किसी को ठेस पहुंची है तो वे उसके लिए खेद प्रकट करते हैं।
समाज और राजनीति पर असर
राजनीतिक दृष्टिकोण
- बीजेपी और आरएसएस समर्थक इस मामले को गंभीर अपराध मान रहे थे।
- वहीं, विपक्ष और कुछ बुद्धिजीवी इसे फ्री स्पीच पर हमला बता रहे थे।
समाज का विभाजन
- एक वर्ग मानता है कि व्यंग्य और कार्टून लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं।
- दूसरा वर्ग मानता है कि धार्मिक भावनाओं के नाम पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए संकेत
यह केस भविष्य के लिए कई संकेत छोड़ता है:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा कहाँ तक है?
- धार्मिक भावनाओं की आड़ में क्या हर व्यंग्य पर रोक लगाई जा सकती है?
- सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई सामग्री के लिए जिम्मेदारी किसकी होगी?
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक संतुलित आदेश है। एक ओर इसने कार्टूनिस्ट को गिरफ्तारी से राहत दी, वहीं दूसरी ओर पुलिस को यह अधिकार भी दिया कि यदि वह जांच में सहयोग न करें तो जमानत रद्द करने की मांग की जा सकती है।
यह केस हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र में व्यंग्य और आलोचना जरूरी हैं, लेकिन वह कभी भी धार्मिक सौहार्द और सामाजिक शांति के खिलाफ नहीं जाने चाहिए।
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