प्रस्तावना
शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो न सिर्फ ज्ञान का विस्तार करती है, बल्कि व्यक्तित्व को निखारकर समाज के निर्माण में योगदान देती है। लेकिन जब इसी शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार और हेराफेरी घुस जाए, तो न केवल बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ता है, बल्कि पूरे समाज की जड़ें भी हिल जाती हैं। हाल ही में राजस्थान पत्रिका की एक खोजी रिपोर्ट में स्कूलों में हो रहे फर्जीवाड़े और मान्यता के नाम पर चल रही धोखाधड़ी को उजागर किया गया है। यह रिपोर्ट न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि चिंतन का विषय भी है।

हेराफेरी का खेल: पढ़ाई एक जगह, परीक्षा दूसरी जगह
राजस्थान में कई निजी स्कूल ऐसे हैं जिनके पास सिर्फ कक्षा 5वीं से 8वीं तक की मान्यता है, लेकिन वे बच्चों को 10वीं और 12वीं कक्षा में एडमिशन दे रहे हैं। बच्चे स्कूल में पढ़ते किसी और संस्थान में हैं, और परीक्षा देते किसी और मान्यता प्राप्त स्कूल से। यह सीधे तौर पर शिक्षा के नियमों और बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है।
मामला 1: बिना मान्यता के नाम पर प्रवेश
एक निजी स्कूल में कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाया जा रहा था, लेकिन शिक्षा विभाग की फाइलों में उस स्कूल को सिर्फ 5वीं तक की मान्यता प्राप्त है। इसके बावजूद स्कूल खुलेआम प्रवेश दे रहा है और अभिभावकों को गुमराह कर रहा है।
मामला 2: एक स्कूल में नामांकन, परीक्षा किसी और स्कूल से
बच्चों को एक स्कूल में नामांकित किया जाता है, लेकिन बोर्ड परीक्षा के लिए उनका नाम किसी दूसरे स्कूल में भेजा जाता है। इससे न केवल बच्चों की पढ़ाई में असंतुलन आता है, बल्कि अभिभावकों को भी असल सच्चाई का पता नहीं चलता।
अभिभावकों की चिंता
इस फर्जीवाड़े के शिकार सबसे पहले वे मासूम बच्चे हैं जो शिक्षा पाने की उम्मीद लेकर स्कूल जाते हैं। उनके अभिभावकों को यह मालूम ही नहीं होता कि जिस स्कूल में उन्होंने अपने बच्चे का दाखिला कराया है, वह मान्यता प्राप्त है या नहीं। शिक्षा के नाम पर मोटी फीस वसूलना, परीक्षा में बैठने के लिए दूसरी संस्था का सहारा लेना — यह सब मिलकर बच्चों की नींव कमजोर कर रहे हैं।
शिक्षा विभाग की भूमिका पर सवाल

इस पूरे प्रकरण में शिक्षा विभाग की चुप्पी बेहद हैरान करने वाली है। फाइलों में मान्यता के रिकॉर्ड तो हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्कूल क्या कर रहे हैं — इसकी कोई निगरानी नहीं। इसका अर्थ साफ है — या तो विभाग की अनदेखी है, या फिर मिलीभगत।
बच्चों का भविष्य बनाम संस्थाओं का लालच
इस तरह के हेराफेरी से सिर्फ संस्थाएं लाभ कमा रही हैं, जबकि बच्चों का शैक्षिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है। ऐसे स्कूलों से निकले बच्चे उच्च शिक्षा में दाखिला लेते समय दस्तावेजों की वैधता को लेकर समस्याओं में पड़ सकते हैं।
समाधान क्या हो?
✅ सख्त निगरानी – शिक्षा विभाग को नियमित निरीक्षण और औचक जांच करनी चाहिए।
✅ ऑनलाइन सत्यापन पोर्टल – माता-पिता के लिए ऐसा पोर्टल उपलब्ध होना चाहिए जहाँ स्कूल की मान्यता की स्थिति पता चल सके।
✅ कानूनी कार्रवाई – ऐसे फर्जी स्कूलों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
✅ जागरूकता अभियान – अभिभावकों को स्कूल चुनते समय सतर्क रहना होगा और दस्तावेजों की जांच करनी होगी।
निष्कर्ष
शिक्षा सिर्फ एक सेवा नहीं, एक जिम्मेदारी है। स्कूल यदि इस जिम्मेदारी को लाभ का साधन बना लें और शिक्षा विभाग आँख मूँद ले, तो बच्चों का भविष्य अंधेरे में चला जाता है। जरूरत है कि अभिभावक जागरूक बनें, और शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। वरना ऐसे हेराफेरी भरे “शिक्षा के मंदिर” सिर्फ दिखावे बनकर रह जाएंगे।
👉 अगर आप भी एक अभिभावक हैं, तो अब समय है सवाल पूछने का। जानिए आपके बच्चे की पढ़ाई कहाँ और कैसे हो रही है — क्योंकि ये सिर्फ एक दाखिला नहीं, आपके बच्चे का भविष्य है।