“शराब मुक्त गांव: जनजातीय समाज की नई क्रांति”

✍️ प्रस्तावना:
जहाँ एक ओर देश के कई हिस्सों में नशा एक सामाजिक अभिशाप बन चुका है, वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के गंगालूर ब्लॉक के 11 जनजातीय गाँवों ने एक ऐतिहासिक और अनुकरणीय कदम उठाया है। इन गाँवों में अब न सिर्फ शराब पीना प्रतिबंधित है, बल्कि उसकी बिक्री भी एक अपराध माना गया है। यह कदम न केवल स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार की दिशा में एक साहसिक पहल है, बल्कि एक जन-जागृति का प्रतीक भी है।


🍃 जनजातीय समाज की जागरूकता:
बीजापुर जिले के आदिवासी समाज ने खुद की पहल पर शराब के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा खड़ा किया है। बैठकें हुईं, समाज के वरिष्ठ जनों ने नेतृत्व किया, और अंततः एक ठोस निर्णय लिया गया — शराब पीना या बेचना अब इन गांवों में वर्जित होगा। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि समाज जब खुद परिवर्तन की ठान ले, तो बदलाव निश्चित होता है।


🚫 शराब पर पाबंदी — क्यों है यह जरूरी?

  • स्वास्थ्य पर असर: शराब का अत्यधिक सेवन जनजातीय समुदायों में कुपोषण, घरेलू हिंसा और बीमारियों का मुख्य कारण रहा है।
  • आर्थिक नुकसान: कम आमदनी वाले घरों में शराब पर खर्च परिवार की ज़रूरतों से अधिक हो जाता है।
  • सामाजिक विघटन: नशा व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और परिवार से दूर कर देता है।

💪 ऐसा लिया गया निर्णय:
इन गाँवों में अब यदि कोई व्यक्ति शराब बेचता या पीता हुआ पाया जाता है, तो उस पर ₹25,000 तक का जुर्माना लगाया जाएगा। यह नियम गाँव की सामूहिक सहमति से बनाया गया है, और इसका पालन ग्रामीण समाज पूरी तरह सुनिश्चित कर रहा है।


🛑 गाँवों की सूची जहां शराब पर प्रतिबंध है:
सक्तापल्ली, मुरदण्डी, कड़ेनार, तालनार, गुट्टुगुड़ा, मल्लूर, कोतवाली, पातरपारा, और अन्य गाँवों ने यह सामूहिक निर्णय लिया है।


🔁 क्यों है यह पहल अनुकरणीय?

  1. समुदाय द्वारा, समुदाय के लिए निर्णय: यह पहल किसी सरकारी आदेश से नहीं, बल्कि स्वयं समाज के नेतृत्व में हुई।
  2. संवेदनशीलता और सुधार: शराब पीने के दुष्परिणामों को देखकर समाज ने खुद सुधार का रास्ता चुना।
  3. प्रेरणा बनते गाँव: यह कदम देश के अन्य ग्रामीण और शहरी इलाकों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।

🧠 समाज का संदेश:
“शराब पीकर कोई बहादुरी नहीं दिखाता, बल्कि असली बहादुर वह होता है जो अपने और अपने परिवार के भविष्य की रक्षा करता है।”


🔚 निष्कर्ष:
जनजातीय समाज की यह पहल हमें यह सिखाती है कि परिवर्तन ऊपर से थोपा नहीं जाता, वह भीतर से आता है। जब एक समुदाय मिलकर ठान ले कि अब बदलाव करना है, तो वह सामाजिक बुराइयों को जड़ से उखाड़ सकता है। बीजापुर के ये गाँव एक आदर्श बनकर उभरे हैं — जहाँ समाज ने अपने हाथों से अपने भविष्य को सुधारा है। यह केवल शराबबंदी नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, स्वास्थ्य और सामाजिक उत्थान की दिशा में उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।


📣 क्या हम अपने आस-पास के समाज में ऐसी सकारात्मक पहल की कोशिश कर सकते हैं? अब समय है कि हम भी इस विचार को आगे बढ़ाएँ।


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