“पेशावर की गलियों से बॉलीवुड की चमक तक: अब फिर जलेगी दिलीप और राजकपूर की विरासत की मशाल!”


पेशावर की ऐतिहासिक गलियाँ फिर से बोलेंगी: दिलीप कुमार और राजकपूर के बचपन की कहानी

पेशावर, पाकिस्तान —
कभी जिन गलियों में हिंदी सिनेमा के दो स्तंभ — दिलीप कुमार और राजकपूर — अपने बचपन की मासूमियत में खोए रहते थे, अब उन्हीं गलियों में इतिहास को फिर से जीवन देने की शुरुआत हो गई है। पाकिस्तान सरकार ने इन दो महान कलाकारों की पुश्तैनी हवेलियों को सहेजने और उन्हें संग्रहालयों में बदलने की परियोजना शुरू की है।


🏛️ दो साल, सात करोड़ रुपये और एक अमर धरोहर: एक नई सांस्कृतिक यात्रा का आगाज़

करीब दो वर्षों में और सात करोड़ रुपये की लागत से इन हवेलियों का पुनर्निर्माण किया जा रहा है। यह महज निर्माण कार्य नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जन्म है — इन घरों को संग्रहालय का रूप दिया जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने नायकों की जड़ों से जुड़ सकें।


🎭 दिलीप कुमार का पुश्तैनी घर: जहां एक अदाकार का सपना जन्मा था

दिलीप कुमार (जन्म 1922) का जन्म पेशावर के खान बाजार में हुआ था। यहीं से उनके सपनों ने आकार लिया, और यहीं से उनका सफर शुरू हुआ।
जब 1988 में दिलीप कुमार पाकिस्तान लौटे, तो उन्होंने अपने पुराने घर के दरवाज़े को चूमा और भावुक होकर कहा —
“यही वो घर है, जहां मेरे सपने जन्मे थे।”

उनके अभिनय की चमक ने पूरी दुनिया को मोहित किया — “मुगल-ए-आज़म”, “देवदास”, “गंगा-जमुना” जैसी फिल्मों से उन्होंने सिनेमा के मायने बदल दिए।


🎬 राजकपूर की हवेली: बॉलीवुड के ‘शो मैन’ की जड़ें फिर से जीवित होंगी

राजकपूर (जन्म 1924) का पुश्तैनी घर पेशावर के दिलदार मोहल्ला में स्थित है। इसका निर्माण 1918 से 1922 के बीच हुआ था। भारत-पाक बंटवारे के बाद भले ही कपूर खानदान मुंबई चला गया, लेकिन यह हवेली आज भी उनके वैभवशाली अतीत की गवाह बनी हुई है।

राजकपूर की फ़िल्में — “श्री 420”, “आवारा”, “मेरा नाम जोकर” — आज भी हर दिल में गूंजती हैं। अब उनके घर को संग्रहालय में बदलकर उनके संघर्ष और सफलता को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाएगा।


🗣️ ये सिर्फ घर नहीं, जज़्बातों की इमारतें हैं

पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग के निदेशक डॉ. अब्दुस समद ने कहा है कि इस परियोजना का मकसद केवल इमारतों का संरक्षण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवाद और पर्यटन को भी बढ़ावा देना है।

पर्यटन सलाहकार जाहिद खान ने इसे पाकिस्तान के सांस्कृतिक इतिहास को फिर से जीवित करने वाला क्रांतिकारी कदम बताया है।


💭 इन दीवारों से हमारा रिश्ता क्यों है इतना गहरा?

क्योंकि ये दीवारें सिर्फ पत्थर और ईंट नहीं, बल्कि इतिहास, भावना और पहचान की दीवारें हैं। जब कोई दिलीप कुमार या राजकपूर अपने घर लौटते हैं — भले ही प्रतीकात्मक रूप से — तो पूरा उपमहाद्वीप भावनाओं में डूब जाता है।


📸 एक तस्वीर… एक विरासत… एक सपना: बॉलीवुड के इतिहास को फिर से छूने का समय

आइए हम सब दुआ करें कि यह परियोजना सफल हो और जल्द ही हम उन गलियों की सैर करें, जहाँ से हिंदी सिनेमा की आत्मा ने उड़ान भरी थी। ये संग्रहालय न केवल स्मृतियों को संजोएंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेंगे।


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