Netflix की नई फिल्म Inspector Zende, जिसमें मनोज बाजपेयी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, एक बार फिर लोगों को मुंबई पुलिस के मशहूर अफसर माधुकर बापूराव ज़ेंडे की याद दिलाती है। यह वही अफसर थे जिन्होंने कुख्यात सीरियल किलर Charles Sobhraj को दो बार गिरफ्तार किया।
लेकिन Zende की कहानी सिर्फ एक अपराधी की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है। उनका करियर इस बात का सबूत है कि ईमानदारी, धैर्य और सूझबूझ से भी अपराध जगत का सामना किया जा सकता है।
Inspector Madhukar Zende कौन थे?
शुरुआती जीवन और करियर
माधुकर बापूराव ज़ेंडे ने 1959 में मुंबई पुलिस ज्वॉइन की। उस दौर में मुंबई अपराध और अंडरवर्ल्ड से जूझ रही थी। लेकिन Zende अपनी ईमानदारी और शांत स्वभाव के लिए पहचाने गए।
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था:
“मैंने अपने पूरे करियर में कभी गोली नहीं चलाई। पुलिसिंग का मतलब ताक़त दिखाना नहीं बल्कि मौजूदगी से अपराध रोकना है।”
करीब चार दशक (1959–1996) तक उन्होंने मुंबई पुलिस में सेवा की और बिना किसी घोटाले या विवाद के अपनी पहचान बनाई।
Charles Sobhraj को पकड़ने वाला इंस्पेक्टर

पहली गिरफ्तारी – 1971, मुंबई
चार्ल्स शोभराज, जिसे “Bikini Killer” और “The Serpent” कहा जाता था, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम ठग और कातिल था।
- 1971 में इंस्पेक्टर ज़ेंडे ने मुंबई के ताज होटल से शोभराज को गिरफ्तार किया।
- यह गिरफ्तारी दिनों की निगरानी और सटीक जानकारी के आधार पर हुई।
- इस कामयाबी ने Zende को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
दूसरी गिरफ्तारी – 1986, गोवा
यह गिरफ्तारी उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
- 16 मार्च 1986 को शोभराज तिहाड़ जेल से फरार हो गया।
- खबर मिली कि वह गोवा में छिपा हुआ है।
- ज़ेंडे ने उसकी मोटरसाइकिल का नंबर ट्रैक किया और अंदाज़ा लगाया कि वह अंतरराष्ट्रीय कॉल के लिए किसी रेस्टोरेंट का इस्तेमाल करेगा।
- 6 अप्रैल 1986 (ज़ेंडे का जन्मदिन) को उन्होंने गोवा के पोरवोरिम स्थित रेस्टोरेंट में उससे कहा: “Hello Charles, how are you?”
- शोभराज बिना किसी गोलीबारी के गिरफ्तार हो गया।
यह घटना भारतीय पुलिस इतिहास की सबसे मशहूर गिरफ्तारी मानी जाती है।
मुंबई अंडरवर्ल्ड से जंग
माफिया के खिलाफ कार्रवाई
1980 और 90 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड तेजी से बढ़ रहा था। ज़ेंडे ने कई बड़े अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की, जिनमें शामिल थे:
- हाजी मस्तान – स्मगलिंग किंग।
- करीम लाला – डॉन।
- टाइगर मेमन – 1993 बम धमाकों का आरोपी।
- अरुण गवली – गैंगस्टर और बाद में नेता।
- दाऊद इब्राहिम – जिसे ज़ेंडे ने आमने-सामने चुनौती दी लेकिन सीधा गिरफ्तार नहीं कर पाए।
1992 के दंगे
बाबरी मस्जिद दंगों (1992) के दौरान, ज़ेंडे ने एक भीड़ का सामना बिना हथियार उठाए किया। उन्होंने अकेले जाकर युवाओं से बातचीत की और तनाव कम कराया। यह घटना उनकी बहादुरी और धैर्य का प्रतीक है।
Netflix की फिल्म Inspector Zende
मनोज बाजपेयी का अभिनय
फिल्म में मनोज बाजपेयी ने इंस्पेक्टर ज़ेंडे का किरदार निभाया है। इसमें दिखाया गया है:
- चार्ल्स शोभराज की गिरफ्तारी की कहानी।
- ज़ेंडे के नैतिक द्वंद्व और ईमानदारी।
- पुलिसिंग के असली मायने – बुद्धिमत्ता और नैतिकता।
सिनेमाई अंदाज़
फिल्म को थोड़े फॉर्मलिस्ट और नाटकीय अंदाज़ में पेश किया गया है, लेकिन इसमें ज़ेंडे की ईमानदारी और शांत शक्ति को बखूबी दिखाया गया है।
असली कहानी और फिल्म में फर्क
हकीकत से मेल खाते तथ्य
- दोनों गिरफ्तारियाँ – 1971 और 1986 – पूरी तरह सच हैं।
- गोवा रेस्टोरेंट वाला वाकया हकीकत में हुआ।
- मोटरसाइकिल और अंतरराष्ट्रीय कॉल वाला सुराग भी असली है।
फिल्मी मसाला
- संवाद और टाइमलाइन में थोड़े बदलाव किए गए हैं।
- कुछ घटनाओं को नाटकीय बनाने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है।
इंस्पेक्टर ज़ेंडे का निजी जीवन
- ज़ेंडे हमेशा अपनी पत्नी के समर्थन की तारीफ करते थे।
- जब भी उनकी पत्नी खाना परोसतीं, वे पहला निवाला अपने हाथों से उन्हें खिलाते थे।
- वे मानते थे कि ईमानदारी और पारिवारिक सहयोग ही उनकी असली ताक़त है।
88 साल की उम्र में भी ज़ेंडे सक्रिय रहे। उन्होंने ‘Mumbai’s Most Wanted’ नामक किताब लिखी और कई पॉडकास्ट व इंटरव्यू में हिस्सा लिया।
Inspector Zende की विरासत
योगदान
- बिना गोली चलाए अपराधियों को पकड़ा।
- कभी भ्रष्टाचार में शामिल नहीं हुए।
- हमेशा योजना और जानकारी पर भरोसा किया।
सम्मान
- राजीव गांधी ने सार्वजनिक मंच पर उनकी तारीफ की।
- पॉडकास्ट, किताब और अब Netflix फिल्म के ज़रिए उनकी यादें अमर हो गई हैं।
आज भी क्यों ज़रूरी हैं Inspector Zende?
आज जब पुलिस पर भ्रष्टाचार और हिंसा के आरोप लगते हैं, ज़ेंडे का दर्शन प्रासंगिक हो जाता है:
- ताक़त नहीं, मौजूदगी मायने रखती है।
- ईमानदारी ही असली हथियार है।
- समुदाय का भरोसा हिंसा से बड़ा है।
निष्कर्ष
Netflix की Inspector Zende ने एक नई पीढ़ी को बताया कि माधुकर बापूराव ज़ेंडे सिर्फ एक पुलिस अफसर नहीं, बल्कि ईमानदारी और साहस का प्रतीक थे।
चार्ल्स शोभराज को पकड़ने से लेकर दंगों में शांति कायम करने तक, उन्होंने यह साबित किया कि असली ताक़त बंदूक में नहीं, बल्कि सत्य और विश्वास में होती है।
WhatsApp Channel